Saturday, October 23, 2010

उड़ान


पीपल के एक पेड़ पे
थी नन्ही सी इक caterpillar
सिमटी सी उसकी ज़िन्दगी थी
अपने रेशमी कोष की गर्माहट में

फिर एक सुबह टूटा ककून
गिरा पर्दा पलकों से
चौंधया गयी आँखें उसकी
सूरज की तीखी धूप से

नज़रें घुमायीं तो दिखा एक जहां
अनजाना अज्ञात सा
घबराई caterpillar लगी कराहने
बचपन का वो गर्भ जब बिछड़ा

पाँव कुछ बड़े तो हुआ एहसास
एक नए हल्केपन का
पंखो का फड़फड़ाना लगा कुछ
उन पहले कदमो जैसा

लेने लगी है उड़ान वो अब
पर उसके सूरज से सुनहरे और रंगीन
बड़ चली है caterpillar आसमां की तरफ
छोटी पड़ गयी है अब यह ज़मीं ...

3 comments:

Anup Rajput said...

The "English" caterpillar doesn't jar at all! Somehow blends into the other words.

Anonymous said...

Beautiful!! I love. :)

Anonymous said...

hello there thanks for your grat post, as usual ((o: